Supreme court we believe in vasudhaiva kutumbakam but unable to united with family

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में परिवार के क्षरण (erosion) को लेकर चिंता जताते हुए गुरुवार को कहा कि भारत में लोग वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत में विश्वास करते तो हैं, लेकिन करीबी रिश्तेदारों के साथ भी एकजुट रहने में असफल रहते हैं. जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस एस वी एन भट्टी की बेंच ने कहा कि परिवार की अवधारणा समाप्त हो रही है और एक व्यक्ति-एक परिवार की व्यवस्था देश में बन रही है.

बेंच ने कहा, भारत में हम वसुधैव कुटुम्बकम में विश्वास करते हैं, हम इस बात पर यकीन करते हैं कि पूरी पृथ्वी एक परिवार है. हालांकि, उन्होंने आगे कहा, विश्व के लिए एक परिवार बनाने की बात तो दूर की बात है, आज हम अपने परिवार में भी एकता नहीं बनाए रख पाते हैं. परिवार की मूल अवधारणा ही समाप्त होती जा रही है और हम एक व्यक्ति एक परिवार के कगार पर खड़े हैं.

कोर्ट ने क्या-क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने भारत में धीरे-धीरे परिवार की अवधारणा खत्म होने को लेकर यह टिप्पणी एक महिला के केस में की. महिला ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उसने अपने बड़े बेटे को घर से बेदखल करने का अनुरोध किया था.

किस मामले में कोर्ट ने की टिप्प्णी

रिकॉर्ड में यह बात लाई गई कि कल्लू मल और उनकी पत्नी समतोला देवी के तीन बेटे और दो बेटियों सहित पांच बच्चे थे. कल्लू मल का बाद में निधन हो गया. माता-पिता के अपने बेटों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे और अगस्त 2014 में कल्लू मल ने स्थानीय एसडीएम को शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने अपने बड़े बेटे पर मानसिक और शारीरिक यातना देने का आरोप लगाया था.

साल 2017 में, माता-पिता ने अपने बेटों के खिलाफ भरण-पोषण के लिए कार्यवाही शुरू की, जो सुल्तानपुर की एक कुटुंब अदालत में एक आपराधिक मामले के रूप में पंजीकृत हुई.

कुटुंब अदालत ने माता-पिता को 4,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया, जो दोनों बेटों को महीने की सातवीं तारीख तक समान रूप से देना था. कल्लू मल ने आरोप लगाया कि उनका मकान स्वयं अर्जित संपत्ति है, जिसमें निचले हिस्से में दुकानें भी शामिल हैं. इनमें से एक दुकान में वो 1971 से 2010 तक अपना कारोबार चलाते रहे. पिता ने आरोप लगाया कि उनका सबसे बड़ा बेटा उनकी दैनिक और मेडिकल जरूरतों का ध्यान नहीं रखता था.

कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि पिता संपत्ति का एकमात्र मालिक है, क्योंकि बेटे का उसमें अधिकार या हिस्सा है. कोर्ट ने कहा कि बेटे को घर के एक हिस्से से बेदखल करने का आदेश देने जैसे कठोर कदम की कोई जरूरत नहीं थी, बल्कि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत भरण-पोषण का आदेश देकर मकसद को पूरा किया जा सकता था.

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